सदियो से जल रही है ज्योति Mata Brajeshwari Devi, Kangra देखते ही शेयर जरूर करें ।
यह बात उस समय की है जब भारत में मुग़ल सम्राट अकबर का शासन था । वहा पर नदौन ग्राम में ध्यानु नामक एक माँ का भक्त रहता था । वह एक हजार यात्रियों सहित माता के दर्शन के लिये जा रहा था । इतना बड़ा दल देखकर बादशाह के सिपाहियों ने उन्हें चांदनी चौक में रोक लिया । और ध्यानु भक्त को दरबार में पेश किया गया । बादशाह ने पूछा - तुम इतने आदमीयो सहित कहा जा रहे थे । ध्यानु ने हाथ जोड़कर कहा की मै ज्वालामाई के दर्शन को जा रहा हु ।और बाकी सारे लोग भी ज्वाला माई के दर्शन को जा रहे है । हम सभी माता के भक्त है ।
अकबर ने यह सुनकर पूछा की ये ज्वालामाई कौन है और जहा आप सभी जा रहे हो वहा जाने से क्या होगा ?
ध्यानु भक्त ने कहा कि महाराजा - ज्वालामाई पुरे संसार की देवी है । वह अपने भक्तो का बहुत ध्यान रखती है । और जो भी भक्त पुरे मन से माँ से कुछ भी मागता है उसकी मनोकामना जरुर पूरी होती है । माँ की शक्ति का चमत्कार ऐसा है कि उनके स्थान पर बिना तेल- बत्ती के ही ज्योति जलती रहती है ।
यह बात सुनकर अकबर बोले - तुम्हारी ज्वाला माई इतनी ताकतवर है इस बात का यकीन हमें कैसे होगा । तुम माता के भक्त हो , अगर तुम कोई चमत्कार देखाओ तो हम माने की माँ में शक्ति है ।
ध्यानु ने नम्रता से कहा कि - श्री मान ! मै तो माता का एक तुछ भक्त हु । मै भला कोई चमत्कार कैसे कर सकता हु ।
अकबर ने कहा -
अगर तुम्हरी पूजा पवित्र है और तो माता तुम्हारी पूजा से संतुष्ट है तो वह तुम्हारी लाज अवश्य बचाएगी । अगर माता तुम जैसे भक्तो का ध्यान नहीं देगी तो तुम्हारी इबादत का क्या फायदा ?
या तो तुम्हारी देवी माँ ही झूटी है । या तो तुम खुद उनकी भक्ति के काबिल नहीं हो ।
इम्तिहान के लिये हम तुम्हारे घोड़े की गर्दन काट देते है , तुम अपनी देवी माँ से कहकर उस घोड़े को जिन्दा करा देना । और अकबर ने घोड़े की गर्दन कटवा दी ।
ध्यानु भक्त ने कोई उपाय न देखकर अकबर से एक माह का समय माँगा और घोड़े के सर और बाकि शरीर को सुरक्षित रखने का अनुरोध किया | अकबर ने उसकी बात मान ली | बादशाह से विदा होकर ध्यानु अपने साथियो के साथ माता के मंदिर गया और स्नान पूजन आदि करने के बाद रात भर माता का जागरण किया | प्रातः काल आरती के समय ध्यानु ने माता से हाथ जोड़कर विनती की -
हे माँ ! आप सब जानती हो , बादशाह मेरी भक्ति की परीक्षा ले रहा है मेरी लाज रखना माँ और घोड़े को जिन्दा कर देना | यदि आप ऐसा नहीं करेगी तो मैे अपना सर काटकर आपके चरणो में अर्पित कर दुँगा ,क्योकि लज्जित होकर जीने से अच्छा होगा मैे अपने प्राण त्याग दु | यह मेरी प्रतिज्ञा है आप उत्तर दे माँ |
कुछ समय तक उत्तर न पाकर ध्यानु ने अपनी तलवार से अपना शीश काटकर देवी माँ को भेट कर दिया |
उसी समय माँ ज्वाला देवी प्रकट हुई और ध्यानु को पुनः जीवित कर दिया | माँ ने ध्यानु से कहा की दिल्ली में घोड़े का सर जुड़ गया है और घोडा जीवित हो उठा है, अतः अब लेट न करो और तुरंत दिल्ली पहुँचो ,अब तुम्हे लज्जित नहीं होना पड़ेगा | इसके अलावा और कोई इच्छा हो , वर मागो |
ध्यानु ने माता को नमस्कार किया और निवेदन किया कि हे माँ ! आप अपने भक्तो की इतनी कठिन परीक्षा न लिया करे हर कोई अपनी गर्दन काट कर आपको भेट नहीं कर सकता है | अतः आपसे निवेदन कि किसी साधारण भेट से ही भक्तो की मनोकामना पुरी कर दिया करे |
तथास्तु ! अब मैे केवल नारियल की भेट और सच्चे मन से की गयी पूॅजा से ही प्रसन्न होकर मनोकामना पुरी कर दुगी |
उधर दिल्ली में जब घोडा जीवित हुआ तो सारे लोग सहित अकबर भी चकित हो गए | इसके बाद बादशाह ने कुछ सिपाहियों को ज्वाला जी भेजा | सिपाहियों ने वापस आकर अकबर को सुचना दी की वहा जमीन से रोशनी की लपट निकल रही है ,शायद उसी की ताकत से यह करिश्मा हुआ है , अगर आप हुकम करे तो इसे बंद कर दे ,इस तरह हिन्दू के इबादत की जगह खत्म हो जाएगी
अकबर ने स्वीकृति दे दी | शाही सिपाहियों ने पहले उस पवित्र ज्योति के ऊपर लोहे के मोटे मोटे तवे रख दिए | परन्तु दिव्य ज्योति तवे को फोड़ कर ऊपर निकल आई | इसके बाद ज्योति के ऊपर एक नहर का बहाव उस ओर मोड़ दिया गया जिससे ज्योति बुझ जाये , पर ऐसा नहीं हुआ | शाही सिपाही इस बात से बहुत परेशान हुए और उन्होंने इसकी सुचना अकबर को दी | अकबर भी ये जानकर बहुत हैरान हुआ , इसके बाद अकबर ने अपने विद्वान पंडितो ने विचार विमर्श किया | विद्वानो ने अकबर को स्वय वहा जाकर माँ का चमत्कार देखने को कहा | और नियमानुसार भेट आदि चढ़ाकर देवी को प्रसन्न करे | बादशाह के लिए दरबार में जाने का यह नियम है कि स्वय अपने कंधे पर सवा मन शुद्ध सोने का छत्र लादकर नंगे पैरो माता के दरबार जाय |
अकबर अपने छत्र के साथ माता के दरबार पंहुचा | वहा दिव्य ज्योति के दर्शन किये और जैसे ही अपना छत्र नीचे रखा ,वह टूट गया और कहा जाता है कि वह सोने का न रहा और न ही किसी और धातु का |
इसका अर्थ हुआ माता ने अकबर की भेट को अस्वीकार कर दिया , अकबर ने कई प्रकार से माता से विनती की पर वो सफल नहीं हुआ और दिल्ली वापस आ गया और अपने सिपाहियों से भक्तो से अच्छे से पेश आने को कहा |
अकबर बादशाह द्वारा चढ़ाया गया खंडित छत्र माता के दरबार में बाई ओर आज भी पड़ा हुआ है जो देखा जा सकता है |
|| बोलो साँचे दरबार की जय ||
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